अभी जो मन्दिरोंका, मूर्तिपूजाका, दूसरोंके मतका खण्डन करते हैं, वे मतवादी वस्तुतः परमात्माको नहीं चाहते, अपना उद्धार नहीं चाहते, प्रत्युत अपनी व्यक्तिगत पूजा चाहते हैं, अपनी टोली बनाना चाहते हैं, अपने सम्प्रदायका प्रचार चाहते हैं ।
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समय आ गया है जब भारत की संसद को एकमत से जुझारू सांसदों और प्रवक्ताओं की (सर्वदलीय) एक टोली बनाना चाहिए जो कि विश्व समुदाय, संस्थाओं और सयुंक्त राष्ट्र संघ में अपनी बात को प्रवीणता, प्रखरता और प्रचंडता से न केवल रख सकें बल्कि रखनें के पश्चात अपनें अनुकूल प्रस्ताव भी पारित करा सकें।